जिस तरह शेयर बाजार में खरीद-फरोख्‍त की जाती है उसी तरह कमोडिटी बाजार में भी खरीद-फरोख्‍त की जाती है। इसके बावजूद कमोडिटी या वायदा बाजार शेयर बाजार से थोड़ा अलग होता है। कमोडिटीज ट्रेडिंग की विधि‍वत शुरुआत बॉम्‍बे कॉटन ट्रेड एसोशिएशन ल‍िमि‍टेड के साथ 1875 में हुई थी और इसी का अनुसरण करते हुए 1900 में गुजराती व्‍यापारी मंडली का भी गठन हुआ, जिससे कि बादाम, बीज और कपास के व्‍यापार को और अधिक बढ़ाया जा सके।

कमोडिटी बाजार में मुख्‍य रूप से रॉ मटेरियल्‍स (कच्‍चा माल) का आदान-प्रदान होता है। कमोडिटी की अवधारणा को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम ये उदाहरण ले स‍‍कते है कि अगर कोई कुर्सी जो किसी के बैठने के लिए बनाई गई हो या वो कोई भी वस्‍तु जो किसी के काम आती हो उसकी ट्रेडिंग ही कमोडिटी क‍हलाती है। वो कोई भी वस्‍तु कमोडिटी मार्केट में नहीं आती, जिसका उत्‍पादन किसी रुचि या शौक को पूरा करने के लिए किया गया हो। इसलिए यह‍ कहा जा सकता है कि उपयोग में लाई जाने वाली हर वस्‍तु कमोडिटी के अंतर्गत आती है। कमोडिटी वह मंच भी है, जहाँ पर पुराने व वर्तमान भावों के आधार पर या इन भावों का विश्‍लेषण्‍ा कर भविष्‍य के सौदे भी तय किए जाते हैं।

कमोडिटी बाजार में उत्‍पाद की गुणवत्‍ता पर ध्‍यान नहीं दिया जाता बल्कि माँग की आपूर्ति अधिक महत्‍वपूर्ण होती है। इस बाजार में क्‍वालिटी महत्‍व नहीं रखती है। यहाँ सिर्फ खरीद-फरोख्‍त होती है बस। आधुनिक कमोडिटी बाजार की जड़ें कृषि उत्‍पादों के व्‍यापार में हैं। 19वीं सदी में अमेरिका में गेहूँ, चना आदि‍ का बड़े पैमाने पर व्‍यापार किया जाता था, लेकिन सोयाबीन जैसे अनाज को अभी-अभी कमोडिटी बाजार में शामिल किया गया है। बाजार की वर्तमान स्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि थोड़े से विश्‍लेषण के बाद इस बाजार में भी हाथ आजमाए जा सकते हैं। बहरहाल जोखिम तो हर तर‍ह के निवेश में होती ही है।

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